अपने गठन के समय से लेकर ही बिहार विधान परिषद् जनता की समस्याओं को दूर करने संबंधी अपने मूलभूत कर्त्तव्यों के प्रति सचेष्ट रही है। बिहार विधान परिषद् में 1913 ई. में बच्चों की शिक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण वाद-विवाद हुआ था। महात्मा गांधी द्वारा चम्पारण में किए गए प्रथम अहिंसक सत्याग्रह के बाद तिनकठिया व्यवस्था से रैयतों को त्राण दिलाने के लिए चम्पारण भूमि –संबंधी अधिनियम, 1918 बिहार विधान परिषद् में पारित हुआ। 1921 ई. में तिब्बी और आयुर्वेदिक दवाखाना खोलने संबंधी प्रस्ताव यहां पारित हुआ। 22 नवम्बर, 1921 ई. को बिहार विधान परिषद् में महिलाओं को मताधिकार दिए जाने संबंधी विधेयक पारित हुआ जो बिहार के गौरवशाली
लोकतांत्रिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण बिन्दु है।
भारत अधिनियम, 1919 के अंतर्गत 29 दिसम्बर, 1920 को बिहार और उड़ीसा को गवर्नर का प्रांत घोषित किया गया। विधान परिषद् की सदस्य संख्या- 43 से बढ़ाकर 103 कर दी गई जिसमें 76 निर्वाचित, 27 मनोनीत तथा 2 विषय- विशेषज्ञ सदस्य होते थे। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अधीन बिहार और उड़ीसा प्रांत से उड़ीसा को अलग कर एक नया प्रांत गठित कर दिया गया। विधान मंडल को द्विसदनात्मक बनाया गया। बिहार विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 29 निर्धारित की गई । 21 मार्च, 1938 को बिहार विधान परिषद् का सत्र नव निर्मित भवन में हुआ। 01 अप्रील, 1950 को बिहार विधान
परिषद् का सचिवालय अलग कर दिया गया।
देश की स्वतंत्रता के बाद बिहार विधान परिषद् और अधिक जनोन्मुखी हुई। श्री कृष्ण कुमार लाल द्वारा बिहार विधान परिषद् में 25 जुलाई, 1952 को प्रस्तुत गैर सरकारी संकल्प, जिसमें उन्होंने 1945-46 में मि0 फेनटन की अध्यक्षता में बनी विशेषज्ञों की समिति के प्रतिवेदन का उल्लेख किया था, के आलोक में मोकामा में प्रथम रेल-सह- सड़क पुल(राजेन्द्र पुल) का निर्माण संभव हुआ। बाद के वर्षों में पटना में गंगा नदी पर पुल बनाए जाने का प्रस्ताव भी बिहार विधान परिषद् में लाया गया। मई, 1982 ई. में इस पुल का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया और इस पुल का नाम महात्मा गांधी सेतु रखा गया। 22 मार्च,
2012 को अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने पर बिहार विधान परिषद् द्वारा शताब्दी समारोह आयोजित किया गया। अपने सौ वर्ष से अधिक के जीवन-काल में बिहार विधान परिषद् जन-समस्याओं के समाधान में हमेशा तत्पर रही है ।
बिहार विधान परिषद् में समय-समय पर सदस्य- संख्या में वृद्धि और कमी की गई है। 26 जनवरी, 1950 को लागू भारतीय संविधान के अनुच्छेद-171 में वर्णित उपबन्धों के अनुसार विधान परिषद् के कुल सदस्यों की संख्या 72 निर्धारित की गई। पुन: विधान परिषद् अधिनियम, 1957 द्वारा 1958 ई. में परिषद् के सदस्यों की संख्या 72 से बढ़ाकर 96 कर दी गई। बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा बिहार के 18 जिलों तथा 4 प्रमंडलों को मिलाकर 15 नवम्बर, 2000 ई. को बिहार से अलग कर झारखंड राज्य की स्थापना की गई और बिहार विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 96 से घटाकर 75 निर्धारित की गई। अभी बिहार विधान परिषद् में
27 सदस्य बिहार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से, 6 शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से, 6 स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से, 24 स्थानीय प्राधिकार से तथा 12 मनोनीत सदस्य हैं ।
बिहार विधान परिषद् का गौरवशाली संसदीय इतिहास रहा है। मॉर्ले-मिंटो द्वारा दिए गए सुझावों के अनुसार बनाए गए भारतीय परिषद् अधिनियम, 1909 के आलोक में 25 अगस्त, 1911 को भारत सरकार ने भारत सचिव को पत्र भेजकर बिहार को बंगाल से अलग करने की सिफारिश की जिसका सकारात्मक उत्तर 01 नवंबर, 1911 को आया। इंग्लैंड के सम्राट द्वारा दिल्ली दरबार में 12 दिसम्बर, 1911 को बिहार-उड़ीसा प्रांत के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त करने की घोषणा हुई और 22 मार्च, 1912 को नए प्रांत का गठन हुआ। 1 अप्रैल, 1912 को चार्ल्स स्टुअर्ट बेली बिहार एवं उड़ीसा राज्य के लेफ्टिनेंट गवर्नर बने। लेफ्टिनेंट
गवर्नर को सलाह देने के लिए इण्डियन कौंसिल ऐक्ट, 1861 एवं 1909 में संशोधन कर गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट,1912 द्वारा बिहार विधान परिषद् का गठन किया गया जिसमें 3 पदेन सदस्य, 21 निर्वाचित सदस्य एवं 19 मनोनीत सदस्य रखे गए। विधान परिषद् की प्रथम बैठक 20 जनवरी, 1913 को पटना कॉलेज (बांकीपुर) के सभागार में हुई ।